GST में firm को दो तरह से रजिस्ट्रेशन किया जा सकता है
- Composition firm
- Regular firm
अब इन दोनों firm में क्या फर्क है यह जानते हैं दी गई इंडेक्स को देखें
Subject | Composition firms | Regular firms |
Turnover limit | अगर किसी फर्म्स की एक साल की सेल 1.5 करोड़ से कम है तो फर्म को कंपोजिशन में रजिस्ट्रेशन करवाया जा सकता है | अगर किसी फर्म की 1 साल की सेल 1.5 करोड़ से ज्यादा है तो फर्म को रेगुलर में रजिस्ट्रेशन करवाना अनिवार्य है |
Optional registration | अगर फर्म की 1 साल की सेल 1.5 करोड़ से कम है तो प्रोपराइटर चाहे तो रेगुलर में भी रजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं | रेगुलर के लिए कोई ऑप्शन रजिस्ट्रेशन नहीं है मान लो कि किसी ने यह सोच के कंपोजिशन में फ्फर्म रजिस्ट्रेशन कार्रवाई की उसकी सेल 1.5 करोड़ से कम होगी और 1.5 करोड़ से ऊपर चली गई तो कंपोजिशन फॉर्म को रेगुलर करवाना अनिवार्य है |
GST return | कंपोजिशन फर्म को क्वार्टरली रिटर्न(3 महीने में एक बार ) लगाना पड़ता है जैसे CMP08 रिटर्न कहते है | रेगुलर फर्म को हर महीने 1 रिटर्न लगाना पड़ता है जिसे GSTR3B रिटर्न कहते हैं |
Applicable of tax rates | कंपोजीशन फर्म में परचेस पर लगाने वाले GST की INPUT नहीं ली जा सकती और ना ही सेज पर GST लगाया जा सकता है यानी परचेज में जो टैक्स हमने सरकार को पे किया है उसे कस्टमर से भी वापस नहीं लिया जा सकता | रेगुलर फर्म को INPUT GST और OUTPUT GST का पूरा रिकॉर्ड रखना पड़ता है यानी हर महीने किसी परचेस की और उसे पर कितना टैक्स पे किया और हर महीने कितने सल की और उसे पर कितना टैक्स कलेक्ट किया |
Tax liability | कंपोजिशन फर्म हर 3 महीने में जितने सेल करती है उसको रिटर्न के साथ सेल का 1% टैक्स देना पड़ता है फॉर एग्जांपल 3 महीने में ₹25000 की से हुई तो 25000 रुपए का एक परसेंट यानी ₹2500 सरकार को पेमेंट करना पड़ता है | रेगुलर फर्म में GSTR3B रिटर्न के अकॉर्डिंग अगर टैक्स पेबल बनता है तो टैक्स को पे करना है नहीं बनता तो नहीं करना फॉर एग्जांपल 1 महीने में 1000 के परचेस की जिस पर ₹500 टैक्स परचेज से के साथ ही पैड कर दिया और उसी महीने 1200 की सेल्स की जिसपर 700 RS. टैक्स कस्टमर से कलेक्ट किया यहां हमारे टैक्स लिबर्टी बनती है तो बाकी का बैलेंस 700 – 500 = 200 रुपए तक सरकार को पे करना है और यानी मन को साले ₹800 रुपीस ही हुई और कस्टमर से टैक्स ₹300 ही वसूल किया तो ₹200RS. सरकार के पास जमा रहेंगे टैक्स देने की जरूरत नहीं |
Example of entry | कंपोजिशन फर्म में टैली में परचेस या सेल्स की एंट्री करने पर SGST & CGST या IGST नहीं लगाया जाता डायरेक्ट टैक्स इंक्लूड आइटम की वैल्यू डालकर इंट्री कर दी जाती है | रेगुलर फर्म में टैली में परचेज या सेल्स की एंट्री करने पर आइटम की टैक्सेबल वैल्यू अलग लिखी जाती है और उसे पर लगने वाला टैक्स IGST या SGST लगाया जाएगा |
Name of invoice | कंपोजिशन फर्म में जो बिल बनता है उस बिल को सप्लाई कहते हैं | रेगुलर फर्म मैं जो बिल बनता है उसे टैक्स इनवॉइस कहा जाता है |
Advantage Disadvantage | कंपोजिशन फर्म मैं बुक्स कीपिंग करना इजी है और क्वार्टरली रिटर्न यानी 3 महीने में केवल एक ही रिटर्न लगाना पड़ता है अगर कोई कस्टमर रेगुलर फर्म में रजिस्ट्रेशन है और कंपोजिशन फर्म वाले से इनपुट लेने के लिए with tax invoice मांग ले तो नहीं दिया जा सकता | रेगुलर फीमेल परचेस पर इनपुट टैक्स किया जा सकता है और सेल्स पर दूसरे फॉर्म को टैक्स दिया जा सकता है यानी अगर कोई कस्टमर रेगुलर फर्म में रजिस्ट्रेशन है और वह बहुत इनपुट लेने के लिए इनवॉइस मांग ले तो दिया जा सकता है हर महीने रिटर्न लगाना पड़ता है उसमें भी टैक्स मिसमैच का पूरा ध्यान रखना पड़ता है बुक्स कीपिंग में भी सावधानी बरतनी पड़ती है |
कम्पोजिशन फर्म की अकाउंटिंग बहुत ही आसान है रेगुलर फर्म के अकाउंटिंग सीखने के बाद कंपोजिशन फर्म की भी अकाउंटिंग सिखाऊंगा फिलहाल हम रेगुलर फर्म की अकाउंटिंग सीखेंगे
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उम्मीद करता हूं कि आप अच्छे से समझ में आ गया होगा हम आगे के चैप्टर में जो भी सीखेंगे फिलहाल रेगुलर फर्म के अकॉर्डिंग ही सीखेंगे ।